बहुत वक़्त बाद अपने शहर आयी थी पर अपने शहर में रहकर भी दिमाग और दिल तुम्हारी गलियों में रह गया था। मैं भूल चुकी हूं तुम्हे! या शायद कोशिश अब भी जारी है? पता नहीं! पर आज हुआ ये, के काफी दिनों बाद यहां बारिश हो रही थी और मैं अपनी पसंदीदा कैफे की बालकनी में बैठकर अपने यादों के पन्नों को पलट ही रही थी कि तभी, बालकनी में एक लड़की आई। हां, ज़रा सा डिस्टर्ब सा फील हुआ पर मैंने कोई रिएक्ट किया नहीं। वो लड़की गुमसुम सी खड़ी थी और ऐसे में मेरा अपनी यादों पर ध्यान देना ज़रा मुश्किल हो रहा था।
“यहां से शहर खूबसूरत लगता है ना?”- मैंने बस ऐसे ही माहौल की खामोशी को लफ़्ज़ों से भरने की कोशिश की पर उसने कुछ कहा नहीं। कुछ देर बाद एक आवाज़ आई।
“अजनबियों से बात कहने कि आदत नहीं पर एक सवाल पूछ सकती हूं?”- उसने कहा। कॉफी की चुस्की लेते हुए मैंने हां में सर हिलाया।
“कितना वाजिब है? यहां खड़े रहकर अपनी यादों में गुम रहना. जब हमारा नया वक़्त हमारे साथ हो तो अतीत में खोना कितना वाजिब है?”- उसने मुझसे पूछा। मैं चुप रही। एक अनजान ने वहीं सवाल पूछ लिए जिनसे मैं भाग रही थी।
“किसी रिश्ते में रुकी हो या अतीत में फंसी हो?”- मैंने अपनी कॉफी पीते हुए उस से पूछा।
“दोनों। और शायद दोनों से भाग रही हूं।”- उसने कहा और दुबारा एक खामोशी ने हमें बांध दिया।
“पता है क्या? इस बालकनी में सुकून मिलता है काफी.. पर दिमाग ना हमेशा कुछ अलग ही ख़यालो में रहता है। कभी पुरानी बातों में या फिर कभी कुछ नए सवालों में। हम सुकून ढूंढते हैं हर जगह पर उस बेचैनी के बारे में भूलेंगे नहीं तो वो सुकून कैसे मिलेगा?”- मैंने उस से कहा।
“बेचैनी और यादों में तालुक नहीं है कोई। अतीत को याद नहीं करना चाहती पर यादों के सैलाब को रोक भी नहीं सकती। कैसे समझाऊंगी मैं उस नए इंसान को? की अब भी दिल-दिमाग दोनों ख्यालों की दुनिया में है?”- उस ने मुझसे अपनी गुमसुम आवाज़ में कहा.
मैंने उसकी तरफ देखा – शाम की बरसात में वो मेरी तरफ बिना देखे मुझसे सवाल कर रही थी शायद इसलिए, क्यूंकि अनजानों में हम अपने सवालों के जवाब या तो ढूंढते है या फिर सिर्फ अपनी कहानियों को एक बोतल में बंद कर कहीं दूर फेंक आने की कोशिश करते है.
“नए रिश्तों में हम सब पुराने किस्से और हमारे पुराने ज़ख्म को लेकर चलते है। शायद इसलिए क्यूंकि हमें लगता है कि नया इंसान पुराने घाव भर देगा।”- मैंने उस अनजान शख्स से कहा.
“पर पता है क्या? यादें ज़िन्दगी का हिस्सा है। जितना दर्द होगा उतनी करीब यादें होंगी। जितनी करीब यादें होंगी उतना ही उस इंसान से करीब रहेंगे ना चाहते हुए भी।”- मैंने उस लड़की को देखा। उसकी आंखे भुरी और रंग गेहुंआ था. चेहरे पर परेशानी साफ थी उसकी और शहर के शोर में हम हमेशा परेशानियां की आवाज़ को दबाने की कोशिश करते है पर अगर, परेशानियां दिल में हो तो क्या करना चाहिए?
हमारे इस मॉडर्न अस्तित्व की यही एक दिक्कत है। हम सब फिल्मों वाला प्यार चाहते है, किताबों वाला प्यार चाहते है या फिर प्यार के नाम पर बस एक वक़्त गुजारने का जरिया। हम शरीर के घाव देख लेते है और इलाज भी करवा लेते है क्यूंकि दाग शरीर पर अच्छे नहीं लगते तो फिर मन का क्या? वो अगर टूटता है तो रो लेना कमजोरी क्यूं है? अपने एहसासों को बताना एक बेतुकी आशिक़ी लगती है सबको तो फिर हम सबको इश्क़ क्यूं चाहिए? पर यहां मेरी अजनबी का सवाल मॉडर्न ज़माने का प्यार नहीं था. उसकी परेशानी थी वो प्यार ना मिलना जिसकी तस्वीर उसने किसी और के रंग से सजाई थी।
“हमारा मॉडर्न जमाना अजीब है। हम अतीत को इश्क़ समझते है और जो पास है उसे बस उस अतीत से भागने का जरिया। जो है उसका कोई महत्व नहीं होता जब तक वो खुद अतीत ना बन जाए फिर एक शाम ऐसी ही बालकनी में बैठे सोचते है, अच्छा था वो वक़्त – काश ये गलती नहीं की होती तो चीजें बेहतर होती। पर अगर, हमें चीजें बेहतर ही बनानी है तो उन्हें बिगाड़े क्यूं?”- मैंने अपनी अजनबी से कहा जिसकी आंखे और ध्यान अब मेरी तरफ थी।
“तो क्या उन यादों को भूल जाएं?”- उस अजनबी ने पूछा।
“भूलना अगर मुमकिन होता तो शायद यहां हर इंसान उदास ना होता। अतीत और यादें ज़िन्दगी का हिस्सा है पर उन्हें जीने का जरिया मत बनाओ। जो आज है, अभी है एक बार उसे जी लो। माना शायद प्यार ना हो? या शायद हो जाए? पर जिस याद में तुम वक़्त गवा रही हो वो वक़्त किसी के लिए तो कीमती है? कोई तो है जो आज सारी रात तुम्हे अपने पास रखकर तुम्हे अपने हिस्से के प्यार के मायने बताना चाहता है। कोई तो है, जो तुम्हे ये कहना चाहता है की उसके लिए उसका आज तुम हो।”- मैंने उस से कहा – अपने ही सवालों का जवाब देते हुए उसकी उलझनें सुलझाने की कोशिश की।
“पुराने रास्तों में नए हमराही के साथ चल के देखो – पुराने रास्तों में एक नई याद बनाओ। ऐसे पल जो पुराने रास्तों में जब निकलो बस खुशी नजर आए – दर्द भी शायद होगा पर उस दर्द से ज़्यादा एक खुशी होगी। बस अपने पुराने रास्तों के लिए एक नई शुरआत मत खो देना।”
उसने मेरी तरफ देख के एक सुकून – भरी मुस्कान दी ।
मैं वहीं खड़ी रही अपनी कॉफी और अजनबी के सवालों के साथ और अपने जवाब के साथ।
अब पुरानी यादों के पन्नों को नहीं देखूंगी। कोई रहे या नहीं – इन रास्तों में कोई हमराही होना जरूरी नहीं। जरूरी है मेरा इस पल में होना. अतीत के टुकड़ों में नहीं खुद के लिए इस पल में जीना।
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