तुम्हारी ही गली में थी आज मैं जब बहुत दिनों बाद जब शहर में आज बारिश हुई थी। बड़ी बड़ी सफेद इमारतें और उन इमारतों मे लगी खिड़कियों को देखकर तुम्हारा धुंधला, पर अभी भी वही जाना पहचाना पर फिर भी अनजान सा चेहरा याद आ रहा था।
कौन थी तुम? कितने सच्चे किस्से थे तुम्हारे और कितनी झूठी बातें कही थी तुमने? बहुत कुछ जानकर भी जैसे मैं हर एक चीज से अनजान थी। पर साल की ये बिन-मौसम बरसात जब भी आती है, ऐसा लगता है जैसे वक़्त अभी भी नहीं बदला है। अतीत के नाजुक पलों मे जैसे अब भी वो बारिश कैद है। इन सफेद इमारतों को देखती हुई आँखें, जो शायद अभी भी किसी इमारत को देख कर ये सोच रही होगी, की आखिर इसकी कहानी क्या है?

एक सुकून है हमारे बीच के अनजानेपान में। इस बारिश में। इसी ही एक बारिश मे हम कहीं मिले थे, जब तुम दूर से बारिश की बूंदों को आसमान से गिरते हुए देख रही थी। जैसे तुम्हारे सारे सजदे इन्ही बूंदों मे कहीं छुपे हो। आँखों मे उदासी और खुशी दोनों थी और मैं, दूर बैठे तुम्हें देखते हुए ये सोच रही थी की आखिर तुम क्या सोच रही हो? क्या हो सकती है बातें, जो तुम अब बारिश से कर रही हो? आदत है मेरी, शहर की भीड़ में एक ऐसे चेहरे को ढूँढने की जो बिना कहे भी कई बातें बोल जाए। एक अनजान चेहरे और उदास आँखों को तलाशने की। शायद यहीं वजह थी, की मैंने सोच जानती नहीं हूँ तो क्या हुआ? बात करने मे कोई हर्ज तो नहीं?


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“hey, you are okay?”- मैं तुम्हारी तरह बारिश से बातें नहीं कर सकती थी, पर दूरियों को कम करने के लिए इस सवाल का साहारा उस खाली कैफै मे लेना जरूरी सा लगा। वो खाली कैफै, जहां शायद हम दोनों ही अटक गए थे और खालीपन भी वहाँ ऐसा था जो दम घोंट रहा हो।
तुमने अपनी उदास पर खिलखिलाती आँखों से मुझे देखा और कहा, “हाँ, पर कुछ खास नहीं।”

हम दोनों शायद किसी का इंतज़ार कर रहे थे, या शायद खुद की तन्हाईयों को खालीपन के समंदर मे भूलने की कोशिश कर रहे थे। पर अजीब बात थी, मेरे सवाल और मेरे आने से तुम्हें जरा भी परेशानी नहीं हुई।

You were just happy to talk to a stranger maybe.

तुमने मुझे उन चंद घंटों मे कई बातें बताई। वो बातें, जो शायद हम कभी खुद से भी न कह पाते है पर एक अनजान से बिना किसी उम्मीद के बस, कह जाते है।
किस्से, कहानियां, जिनमे झूठ क्या था और सच क्या मैं सबसे बेखबर थी।

और शायद अनजानेपन की यही खासियत होती है, कोई फर्क नहीं पड़ता अनजानों को, कुछ भी कह दो। एक सुकून होता है अनजानेपन में।

उस शाम हमने देर तक बातें की। तुम्हें बारिश कितनी पसंद थी, तुम्हें लिखना पसंद था, रातें पसंद थी, शिकायतों से भरी ज़िंदगी पसंद थी। मैंने उन चंद घंटों मे ये जाना की तुम्हें डर किस बात का है? और ये की जितनी ये बारिश तुम्हें पसंद है, उतनी मुझे नापसंद। उस दिन, शायद हम दोनों जिनका इंतज़ार कर रहे थे उन्होंने आना जरूरी नहीं समझा। और जाने अनजाने मे, हमने अनजानेपान मे एक वक़्त के लिए खुशी तलाश ली थी। पर अफसोस, जब हम खुश होते है, वक़्त ज्यादा तेजी से गुजर जाता है।
बाहर बारिश थमी, और हमारे जाने का भी वक़्त हो चुका था।


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“It’s good to know you. Maybe we will meet someday again. ऐसी ही किसी बरसात मे शायद.”- मैंने कहा तो तुम्हारी चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। उम्मीद और नाउम्मीदी दोनों थी उस मुस्कान में।

“फिर इस अनजानेपान की खासियत क्या रह जाएगी?” – तुम ये कह कर मुड़ने लगी, जैसे अब जाने वाली हो। पर मैंने भी दोबारा जैसे तुम्हें रोकने के लिए कह ही दिया था, “Don’t worry, it’s not like I am going to stalk you.”

तुम पीछे मुड़ी और इस बार चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा, “ यहीं पास मे ही रहती हूँ।”
ये कहकर तुम वहाँ से चली गई। उस बारिश की शाम मे शायद मेरे लिए इतना ही जानना काफी था। और आज भी, मेरे लिए इतना ही काफी है।
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बारिश की धुन को मैं भी सुनने की कोशिश करती हूँ। जब भी इस शहर मे बारिश होती है, सोचती हूँ तुम इस बार क्या बात कर रही होगी इस बारिश से? क्या कह रही होगी इस बारिश हो? तुम्हारी गली की इमारतें, वहाँ आने जाने वाले कई अनजान चेहरे और उन में छिपी कई कहानियों को आज भी मैं पढ़ने की कोशिश करती हूँ।
ये बेनाम सी इमारतों की कहानियां, ये बारिश की धुन जैसे बार बार तुम्हारा ही नाम ले रही हो।

पर अब जब मैं यहाँ बैठे ये लिख रही हूँ, इन इमारतों को और बारिश को पढ़ने की कोशिश कर रही हूँ तो ऐसा लग रहा है जैसे तुम एक छलावा हो। एक धोखा। मेरे अकेलेपन की गड़ी हुई शायद एक काल्पनिक कहानी।
उस खूबसूरत वक़्त की कहानी जहां ठहर कर सुकून मिलता है। कभी कभी, ये लगता है शायद हो सकता है तुम असल मे हो, कहीं इस शहर की बारिश से बहुत दूर। वक़्त बेवक्त ख्याल आ जाते है तुम्हारे पर अब बस तुम एक याद का हिस्सा हो। यादों के उस हिस्से में हो जहां उम्मीदें नहीं पनपती, न जहां किसी के अपने के जाने का दुख होता है, न जहां फिक्र होती है और न ही कोई मलाल होता है। एक ऐसा हिस्सा, जहां मेरे लिए बस एक सुकून है।

जहां तुम बस एक बरसात की याद से ज्यादा कुछ नहीं। और दुनिया से थक कर, बारिश में तुम्हारी इस गली पर जब भी आती हूँ, बस यहीं सोचती हूँ आखिर इन सारी सफेद इमारतों मे तुम्हारा मकान कौनसा होगा? जहां शायद तुम कुछ ख्वाब बुन रही होगी।

शायद, अनजानेपान की यहीं खासियत है। एक वक़्त, एक एहसास, एक कशिश, जो शायद इस दुनिया के वसूलों के समझ से बाहर है। शायद, अनजानेपान की यही खासियत है, की जानने की चाह भी हो तो भी अनजानेपन मे अपनेपन से कई ज्यादा सुकून मिलता है।